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कविता

जैसे याद आ जाता है

भवानीप्रसाद मिश्र


जैसे याद आ जाता है चेहरा किसी का
सामने पड़ जाने पर
और नाम उसका याद नहीं आता

या जैसे अकेले में नाम याद आता है कोई
और चेहरा खींचे नहीं खिंचता

या जैसे एकाध-बार
जाने-पहचाने से लगते हैं वे
जिनसे कभी नहीं मिले

पाने और खोने के
कोने ही कोने वैसे आज गड़ते हैं
कभी आँख में कभी मन में
कभी पीठ पर

हाथ कुछ नहीं लगता
न नाम न रूप
अस्तित्व का आँगन
कृतज्ञता की धूप से भरा है
और तिस पर भी
सूना है विस्तार
देहरी से ठाकुरद्वारे तक का

पाने और खोने के
कोने ही कोने गड़ते हैं
पीठ में
मन में दीठ में !

 


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